
हर्षवर्धन ने कहा, अधिसूचना का गलत मतलब निकाला गया
इस मुद्दे का हो रहा है राजनीतिकरण
केंद्र सरकार पशु बाजारों में वध के लिए जानवरों की बिक्री पर पाबंदी लगाने वाले विवादास्पद कानून में संशोधन करने को तैयार है। इससे कई मुद्दों पर जारी भ्रम की स्थिति दूर हो जाएगी और यह भी साफ हो जाएगा भैंस प्रतिबंध की श्रेणी में होगी या नहीं। पर्यावरण मंत्री हर्षवर्धन ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘इस मुद्दे (वध के लिए जानवरों की बिक्री) का राजनीतिकरण किया जा रहा है और इस बारे में जारी अधिसूचना का गलत अर्थ निकाला गया है। अगर किसी खास शब्द या वाक्य के कारण यह गलतफहमी हुई है तो हम ईमानदारी से इस भ्रम को दूर करने का प्रयास करेंगे।’
23 मई को अधिसूचित नियमों में पशु बाजारों से जानवरों को खरीदने के लिए कई तरह की शर्तें लगाई गई हैं। खरीदार को यह हलफनामा देना होगा कि उसने मारने के लिए नहीं बल्कि कृषि कार्यों के लिए पशु को खरीदा है। इस अधिसूचना के कारण देश के सभी पशु बाजारों में कामकाज ठप हो गया है। इससे खासकर भैंस के मांस का कारोबार खासा प्रभावित हुआ है क्योंकि पशु बाजारों से 90 फीसदी से अधिक भैंसों की खरीद बूचड़खाने मांस और चमड़े के लिए करते हैं। इस अधिसूचना से बूचड़खानों में करीब स्थित लैराज में भी पशुओं की बिक्री पर पाबंदी लगा दी गई है। लैराज वह जगह होती है जहां बिक्री से पहले जानवरों को रखा जाता है।
नियमों में पशु को गोवंश के तौर पर परिभाषित किया गया है जिनमें बैल, सांड, गाय, भैंसा, बछड़ा, बछिया और ऊंट शामिल है। अधिसूचना में किसी भी राज्य की सीमा के 25 किलोमीटर और अंतरराष्ट्रीय सीमा के 50 किलोमीटर के दायरे में पशु बाजार नहीं लगाया जा सकता है। इस अधिसूचना से न केवल भैंस के मांस का कारोबार और निर्यात प्रभावित हुआ बल्कि इसने पशुधन और डेयरी क्षेत्र को भी हिलाकर रख दिया। यह क्षेत्र पिछले कुछ सालों से अनाज से भी तेज गति से वृद्घि कर रहा था। कांग्रेस समेत विपक्षी दल ने इस अधिसूचना के लिए सरकार को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि वह लोगों की खानपान की आदतों पर पाबंदी लगा रही है।